झारखंड के इस मंदिर में घोड़े की होती है पूजा

Jamshedpur Ghoda Baba Temple

गजब परंपरा! झारखंड के घोड़ा बाबा मंदिर में भगवान नहीं, घोड़े की होती है पूजा; मन्नत पूरी होने पर चढ़ाया जाता खास चीज

झारखंड,(Jamshedpur Ghoda Baba Temple ):भारत की धरती पर अनगिनत मंदिर और अनोखी परंपराएं हैं, जो आस्था और संस्कृति का अनूठा संगम पेश करती हैं। लेकिन झारखंड का एक मंदिर ऐसा है, जो अपनी अनोखी परंपरा के लिए दूर-दूर तक मशहूर है। यह है घोड़ा बाबा मंदिर, जहां न किसी भगवान की मूर्ति है, न ही किसी देवी-देवता की पूजा होती है। इस मंदिर में पूजा जाता है घोड़े की, और मन्नत पूरी होने पर भक्त मिट्टी के घोड़े और हाथी चढ़ाते हैं। इतना ही नहीं, यहां का प्रसाद भी खास है, जिसे घर ले जाना मना है और इसे मंदिर परिसर में ही ग्रहण करना होता है। आइए, जानते हैं इस अनोखे मंदिर और इसकी गजब परंपरा की पूरी कहानी।

घोड़ा बाबा मंदिर: झारखंड की अनोखी शान

झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के गम्हरिया प्रखंड में स्थित घोड़ा बाबा मंदिर एक ऐसी जगह है, जहां आस्था का अनोखा रंग देखने को मिलता है। जमशेदपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर, सरायकेला मार्ग पर सड़क किनारे बसा यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यहां हर साल मकर संक्रांति के अगले दिन और जन्माष्टमी जैसे खास मौकों पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां भगवान बलराम को ग्राम देवता के रूप में पूजा जाता है, और उनके वाहन घोड़े को विशेष सम्मान दिया जाता है।

क्यों पूजा जाता है घोड़े को?

मंदिर की परंपरा और मान्यता के पीछे एक रोचक कहानी है। स्थानीय लोगों के अनुसार, कई साल पहले इस क्षेत्र में एक भयानक महामारी फैल गई थी, जिसने कई लोगों की जान ले ली थी। उस समय गांव के बुजुर्गों ने भगवान बलराम का आह्वान किया और उनके वाहन घोड़े की प्रतीक के रूप में मंदिर में स्थापना की। इसके बाद महामारी धीरे-धीरे खत्म हो गई। तब से लेकर आज तक, यह परंपरा चली आ रही है। लोग मानते हैं कि घोड़ा बाबा की पूजा करने से उनकी हर मुराद पूरी होती है, और गांव पर कोई संकट नहीं आता।

मन्नत पूरी होने पर चढ़ते हैं मिट्टी के घोड़े और हाथी

घोड़ा बाबा मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा है मन्नत पूरी होने पर मिट्टी के घोड़े और हाथी चढ़ाना। जब भक्तों की मनोकामना पूरी होती है, तो वे अपनी श्रद्धा के अनुसार मिट्टी से बने घोड़े या हाथी मंदिर में अर्पित करते हैं। ये मिट्टी के घोड़े और हाथी भक्तों की आस्था के प्रतीक हैं। मंदिर के आसपास आपको ऐसे मिट्टी के घोड़ों और हाथियों का ढेर देखने को मिलेगा, जो भक्तों की गहरी श्रद्धा को दर्शाता है। यह परंपरा न केवल अनोखी है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे लोग अपनी आस्था को सादगी के साथ व्यक्त करते हैं।

प्रसाद की अनोखी परंपरा: घर ले जाना मना

घोड़ा बाबा मंदिर में प्रसाद को लेकर भी एक अनोखा नियम है। यहां भक्तों को केला, नारियल और अन्य प्रसाद मिलता है, लेकिन इसे घर ले जाना सख्त मना है। मंदिर के नियम के अनुसार, भक्तों को जितना प्रसाद खाना हो, उतना मंदिर परिसर में ही खाना होता है। अगर कोई प्रसाद खा नहीं सकता, तो उसे मंदिर के पास ही रख देना होता है, ताकि वह किसी के पैरों तले न आए। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि प्रसाद में घोड़ा बाबा की कृपा होती है, और इसे अपवित्र नहीं करना चाहिए। यह नियम मंदिर की पवित्रता और अनुशासन को बनाए रखने का एक तरीका है।

मकर संक्रांति पर लगता है विशाल मेला

मकर संक्रांति के अगले दिन घोड़ा बाबा मंदिर में एक भव्य मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त शामिल होते हैं। इस दिन मंदिर में सुबह से ही पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है, और भक्त घोड़ा बाबा के दर्शन के लिए लाइन में लगते हैं। मेला मंदिर के प्रांगण में आयोजित होता है, जहां लोग न केवल पूजा करते हैं, बल्कि मेले का लुत्फ भी उठाते हैं। इस दौरान महाभोग का आयोजन भी होता है, जिसमें भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं। मकर संक्रांति के अलावा, जन्माष्टमी पर भी यहां दो दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान होता है, जिसमें अखंड हरि कीर्तन और अन्य कार्यक्रम शामिल होते हैं।

महिलाओं के प्रवेश पर थी रोक, अब बदल रही परंपरा

कुछ समय पहले तक घोड़ा बाबा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी। यह परंपरा पुराने समय से चली आ रही थी, लेकिन अब धीरे-धीरे इसमें बदलाव देखने को मिल रहा है। आज कई मौकों पर महिलाएं भी मंदिर में दर्शन और पूजा के लिए आती हैं। हालांकि, प्रसाद के नियम अभी भी सख्ती से लागू हैं, और सभी भक्तों को इसका पालन करना होता है।

आस्था का प्रतीक: घोड़ा बाबा की महिमा

घोड़ा बाबा मंदिर भक्तों के लिए एक ऐसी जगह है, जहां उनकी हर मुराद पूरी होती है। लोग यहां नौकरी, स्वास्थ्य, संतान प्राप्ति, और अन्य मनोकामनाओं के लिए मन्नत मांगने आते हैं। मंदिर की सादगी और अनोखी परंपराएं इसे और भी खास बनाती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि घोड़ा बाबा की कृपा से उनके गांव में सुख-शांति बनी रहती है, और कोई बड़ी विपदा नहीं आती।

क्यों है यह मंदिर खास?

घोड़ा बाबा मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है। इसकी अनोखी परंपराएं, जैसे घोड़े की पूजा, मिट्टी के घोड़े-हाथी चढ़ाना, और प्रसाद का मंदिर में ही ग्रहण करना, इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती हैं। यह मंदिर हमें सिखाता है कि आस्था किसी मूर्ति या देवता तक सीमित नहीं, बल्कि यह प्रकृति और प्रतीकों में भी बसती है।

आप भी लें इस अनोखी परंपरा का अनुभव

अगर आप झारखंड की यात्रा पर हैं, तो घोड़ा बाबा मंदिर जरूर जाएं। यह मंदिर न केवल आपकी आस्था को मजबूत करेगा, बल्कि आपको एक अनोखी परंपरा और संस्कृति से भी रूबरू कराएगा। मकर संक्रांति के मेले में शामिल होकर आप इस मंदिर की जीवंतता और भक्तों की श्रद्धा को और करीब से देख सकते हैं।

घोड़ा बाबा मंदिर झारखंड की उस अनोखी परंपरा का प्रतीक है, जो आस्था, सादगी, और संस्कृति को एक साथ जोड़ती है। यहां की हर परंपरा, चाहे वह घोड़े की पूजा हो या मिट्टी के घोड़े-हाथी चढ़ाना, भक्तों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती है। तो आइए, इस मंदिर की महिमा को सलाम करें और इस अनोखी परंपरा को औरों तक पहुंचाएं। क्या आपने कभी इस मंदिर के बारे में सुना था? अपनी राय कमेंट में जरूर साझा करें!

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